Tuesday, December 29, 2015

Group Dispute Theory


Never eat meat and never tease animals, birds etc. If you domesticate cows, buffaloes etc, love them and never fasten a cord in their neck; if you domesticate birds, never keep them in cage. else you have increased the rate of your destruction.

Reason:
No one is special for the God. Death is not pre-decided by the God. Of course, if it is the God's will, death and live can be pre-decided. The God can save life of one no matter another is trying to kill one; for example: Kamsa couldn't kill lord Krishna.



(Continue)

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Hindi Version:
समूह विवाद सिद्धांत

Finally, I will like to say the most important thing that never eat meat and never tease animals, birds etc. If you domesticate cows, buffaloes etc, love them and never fasten a cord in their neck; else you have increased the rate of your destruction. This is based on my group dispute theory what I discussed in my room; and you guys secretly recorded this.

समूह विवाद सिद्धांत


पशु पक्षियों को मत खाओ; और उन्हें मत तंग करो। अगर गाय भैस वगैरा को पालो तो उन्हें मान दो; और उनके गले में मत रस्सी बाधो। अगर पच्छियों को पालो तो उन्हें पिजड़े में मत रखो। नहीं तो अपने पतन की रफ़्तार तेज कर लिए।

कारण:
कोई परमात्मा का बंदा नहीं होता है। परमात्मा किसी की भी मृत्यु तय कर के नहीं भेजते है। हाँ, अगर परमात्मा चाहे तो किसी के भी मृत्यु को रोक सकते है; चाहे दूसरा उसे क्यों न मारना चाहे। जैसे की कंश लाख प्रयासों के बावजूद भी कृष्ण को मार नहीं पाया। 

<लंका और कुरुक्षेत्र युद्ध के पोस्ट पूर्ण करने के बाद समय मिलने पर इस पोस्ट पर आऊंगा और बाकी पूर्ण करूँगा।>

(जारी)

इस पोस्ट से जुड़े लिंक:
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अंग्रेजी संस्करण: 
Group Dispute Theory

अंत में, मैं सबसे महत्वपूर्ण बात यह कहूँगा कि पशु पक्षियों को मत खाओ; और उन्हें मत तंग करो। अगर गाय भैस वगैरा को पालो तो उन्हें मान दो; और उनके गले में मत रस्सी बाधो। नहीं तो अपने पतन की रफ़्तार तेज कर लिए। यह मेरे समूह विवाद सिद्धांत के आधार पर है; जो कि मैंने अपने रूम मे जिक्र किया था। 

Saturday, December 19, 2015

Autobiography


Since childhood, my name was ShriRam Gupta (about.me/ShriRamGupta); on which I have all my certificates. During regular jobs, some girls became my enemies without any reason. I kept (but not changed) my name (about.me/BaitalRaj) on freelance websites for saving myself from them; but in back, freelance websites knew that I was ShriRam Gupta, not Baital Raj; because I used certificate of my name ShriRam Gupta. But I couldn't adjust myself in the world by ShriRam Gupta name. So I changed my name to Alok Gupta (about.me/AlokGuptaHere) by advertising in a news paper by using my driving license and passport; and I thought to adopt the most common human behavior. But unfortunately I couldn't adopt this and thought to remove crimes against women. For this, I changed name to 'hutia Ram' (about.me/hutiaRam). 'C' is absent in 'hutia Ram'.

Related Links to This Post:
Autobiography of hutia Ram (hutiaram.blogspot.com/2015/12/autobiography.html)

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Hindi Version:
आत्मकथा

Finally, I will like to say the most important thing that never eat meat and never tease animals, birds etc. If you domesticate cows, buffaloes etc, love them and never fasten a cord in their neck; else you have increased the rate of your destruction. This is based on my group dispute theory what I discussed in my room; and you guys secretly recorded this.

आत्मकथा


जन्म से मेरा एक नाम था श्री राम गुप्त (about.me/ShriRamGupta)। जिस पर मेरे सारे सर्टिफिकेट हैं। रेगुलर जॉब के दौरान कुछ लड़कियाँ जबरजस्ती मेरी दुश्मन बन गयी। जिनसे बचने के लिए मैंने फ्रीलान्स वेबसाइट पर नाम बैताल राज (about.me/BaitalRaj) रख लिया। लेकिन बैक में फ्रीलान्स वेबसाइट जानती थी कि मैं राम हूँ न कि बैताल। लेकिन राम के नाम से मैं इस दुनिया में फिट नहीं बैठा। तो मैंने न्यूज़ पेपर में पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस का प्रयोग अपना नाम राम से आलोक गुप्त (about.me/AlokGuptaHere) में बदल लिया। और मैं मोस्ट कॉमन मानव बिहेवियर अपना लिया। दुर्भाग्य बस मैं आलोक के रूप में नहीं रह पाया और औरतो के अगेंस्ट क्राइम दूर करने पर उतर आया। और मैंने अपना नाम "hutia Ram" (about.me/hutiaRam) रख लिया। hutia में 'C' एब्सेंट हैं।

इस पोस्ट से जुड़े लिंक:
hutia Ram का आत्मकथा (hutiaram.blogspot.com/2015/12/blog-post_20.html)

(जारी)

अंग्रेजी संस्करण: 
Autobiography

अंत में, मैं सबसे महत्वपूर्ण बात यह कहूँगा कि पशु पक्षियों को मत खाओ; और उन्हें मत तंग करो। अगर गाय भैस वगैरा को पालो तो उन्हें मान दो; और उनके गले में मत रस्सी बाधो। नहीं तो अपने पतन की रफ़्तार तेज कर लिए। यह मेरे समूह विवाद सिद्धांत के आधार पर है; जो कि मैंने अपने रूम मे जिक्र किया था। 

सभ्यता और अपराध।


यहाँ मैं नंबर सिस्टम बेस ४ का प्रयोग कर रहा हूँ। प्राचीन भारत में नंबर सिस्टम बेस ४ के थे। बाद में नंबर सिस्टम बेस १० के हो गए। इसलिए नमः राम का वनवास आठ साल (८ = ४ + ४) से १४ साल (१४ = १० + ४) हो गए। पुरे लंका और कुरुक्षेत्र युद्ध के कथा मे नंबर गड़बड़ होने का यही कारण है। जैसे की शत का मतलब १६ (बेस १० पर) और १०० (बेस ४ पर), न कि १०० (बेस १० पर)। इसलिए भले ही कौरव कुमारो के १०० (बेस १० पर) नाम उल्लेखित हैं। लेकिन वे उतने ज्यादे थे ही नही। 

यह जरुरी नहीं कि ब्यक्तिगत रूप से किसी बुरे ब्यक्ति के खिलाफ आवाज उठाया जाये। और न कि हर अपराध पर प्रोटेस्ट के लिए निकला जाये। बिना सजा दिए अपराध के भावना को खत्म किया जा सकता है। लोगो का माइंडसेट ऐसे बदला जा सकता है कि लोग अपराध ही न करे। भला माइंड सेट किसी व्यक्ति की मानसिक विकास पर नहीं आधारित होता है। सामान्यतः बिना मानसिक विकास के एक बच्चे के पास भला माइंड सेट होता तो है। माइंड सेट कभी भी बदल जाता है। लेकिन समय लगता है। जैसे कि कोई ब्यक्ति इतना बुरा होता है कि वह अपनी ही बेटी कर रेप कर देता है। जब की सामान्य ब्यक्ति के मस्तिष्क में ऐसा ख्याल सपने में भी नहीं उठता। इसका कारण पुलिस कर डर नहीं, बल्कि उसका माइंडसेट है जो कि बचपन से ही बना होता है। मैं इस माइंडसेट का बात कर रहा हूँ। उदाहरण तौर पर, ज्योति सिंह पाण्डेय (दिल्ली गैंगरेप) के केस में लोग प्रोटेस्ट किये और मुजरिमों को सजा दिलाने की बात किया। उन लोगो की माइंडसेट ऐसा बदला जा सकता था कि लोग ऐसा अपराध करते ही नहीं। उनके अन्दर क़ानून का डर नहीं, बल्कि करुणा की भावना होता और डर होता भी तो परमात्मा का डर होता। 

जिस प्रकार भारतीय कानून का दावा है कि यह कड़ा सजा देकर और डरा कर लोगो का माइंड सेट कर देगा। उसी प्रकार लोगो को धार्मिक डर होता है। सामाजिक डर होता है। और ब्यक्तिगत लेवल पर भी डर होता है। यानि दसो (बेस ४ पर) लेवल कर डर होता है। वह है धार्मिक, सामाजिक, राजनितिक (कानूनी) और ब्यक्तिगत स्तर। सवा बिल्लिओन्स केवल राजनीतिक यानि की प्रशासन के डर और ब्यक्तिगत लेवल के डर पर विचार करते हैं। इसलिए वे बोलते हैं कि प्रशासनिक स्तर पर कमिश्नर ऑफ़ पुलिस को रात के २ बजे तक सड़क पर दौराओ, ब्यक्तिगत स्तर पर लड़कियों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग दो वगैरा वगैरा। 

जैसे कि धार्मिक लेवल पर बरदान और श्राप होता है। सामाजिक लेवल पर प्रशंसा और शिकायत होता है। राजनीतिक लेवल पर रिवॉर्ड और सजा होता है। ब्यक्तिगत लेवल पर सहायता और मारा मारी होता है। दूसरा अंतर इन दसो (बेस ४ पर) लेवल में दो पास के लेवल के वीच क्राइम कण्ट्रोल अनुपात (१ : १००,०००) होता है। जैसे कि अगर १ क्राइम ब्यक्तिगत लेवल पर कण्ट्रोल होती है तो १००,००० (बेस ४ पर) क्राइम लीगल लेवल पर कण्ट्रोल होती है। वैसे ही अगर १ क्राइम लीगल लेवल पर कण्ट्रोल होती है तो १००,००० (बेस ४ पर) क्राइम सामाजिक लेवल पर कण्ट्रोल होती है। वैसे ही अगर १ क्राइम सामाजिक लेवल पर कण्ट्रोल होती है तो १००,००० (बेस ४ पर) क्राइम धार्मिक लेवल पर कण्ट्रोल होती है। उदाहरण तौर पर अगर १०००००,०००००,००००० (बेस ४ पर) क्राइम हो और धार्मिक स्तर उन सारे क्राइम तो कण्ट्रोल कर सकता हो तो सामाजिक स्तर केवल १०००००,००००० (बेस ४ पर) ही क्राइम कण्ट्रोल करेंगा। और राजनीतिक स्तर केवल १००००० (बेस ४ पर) क्राइम ही कण्ट्रोल करेगा। और व्यक्तिगत स्तर केवल १ ही क्राइम को कण्ट्रोल करेगा। यह तो मैंने दो ही अंतर बताया। लेकिन इन दसो (बेस ४ पर) लेवल में सहस्त्रो यानि १,००० (बेस ४ पर) यानि ६४ (बेस १० पर) अंतर होते हैं।

धार्मिक लेवल पर पाप और पुण्य का हिसाब परमात्मा करते हैं। परमात्मा उसका सजा इस जन्म या अगले जन्म में देते हैं। कोई समाज या कानून (राजनितिक) उसकी सजा नहीं दे सकती है। यानि कि कोई अपने पिछले जन्म में क्या था; समाज और कानून (राजनितिक) को कुछ नहीं लेना देना। 

मैंने अपने रूम में इन दसो (बेस ४ पर) स्तर में धार्मिक स्तर पर ग्रुप थ्योरी का जिक्र किया था। उसी ग्रुप थ्योरी पर मैं तो बस यह समझाना चाहूँगा कि जानवरों को मत खाओ और मत तंग करो। अगर दूध वगैरा के लिए गाय और भैसों को पालतू बनाते हो तो उन्हें प्यार दो और मान दो। उनके गले में रस्सी मत बाँधो। यह मैं सारे धर्म के लोगो के लिए बोलता हूँ। अगर लोगो को के अन्दर ईश्वर का डर होता तो वे मांस नहीं खाते। जानवर अधिकार कहता है कि कोई अपने फायदे के लिए दुसरे का भक्षण नहीं कर सकता। जानवर अधिकार इन दसो (बेस ४ पर) स्तर में व्यक्तिगत स्तर पर आता है। मानव अधिकार जानवर अधिकार के सबसेट है।

जहाँ तक मेरे अन्दर ईश्वर के डर की बात है। मैं तो डरता ही हूँ। मैंने बचपन से निरीक्षण किया है कि लोगो का बरदान और श्राप का असर बहुत होता है। विश्वास करो या न करो लेकिन सुपरनेचुरल इवेंट नेचुरल रूप से होता है। जब से मुझे मालूम चला कि लंका और कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान क्या हुआ था। कौन किसका पुनर्जन्म था और कैसे उसके पाप और पुण्य का हिसाब हुआ। तब से मुझे मालूम है कि मेरा भी हिसाब होगा। नमः राम को आत्महत्या के लिए बाध्य किया था। मुझे भी किया जा रहा है। 

जब धार्मिक सिस्टम अच्छे ढंग से काम करता है। यदि लोग पाप न करे; तो लोग निरोग रहेंगे। लेकिन यदि लोग पाप करे; तो लोग बीमार पड़ेंगे; और भले ही लोग छुपने वाले झूठ बोले; लेकिन लोग चोरी पॉकेटमारी वगैरा कोई भी अपराध नहीं करेंगे।

कैसे सामाजिक लेवल पर माइंड सेट करे? यह बहुत लम्बी टॉपिक है। वैसे हिन्दू सोशल सिस्टम इस्लामिक सोशल सिस्टम की ओर बहुत पहले से ही मुड़ना स्टार्ट हो गया था। जैसे कि मदिरा बैन करो, कामुक फिल्म बैन करो, रेपिस्ट को मृत्युदंड दो वगैरा। 

जब सामाजिक सिस्टम अच्छे ढंग से काम करता है। प्राचीन भारत के सोशल सिस्टम के अनुसार तब एक नारी अकेली भी क्यों न हो; उसका कोई पुरुष रेप नहीं कर सकता है। उस पुरुष के मन में रेप का ख्याल ही नहीं आएगा। इस्लामिक लॉ एक औरत के अकेले निकलने की अनुमति नहीं है। इसलिए यह इस्लामिक लॉ में नहीं एप्लीकेबल है। लेकिन चोरी, पॉकेट मारी वगैरा अपराध होगा।

भारतीय न्याय व्यवस्था तो दसो (बेस ४ पर) लेवल में राजनीतिक लेवल पर आती है। अगर भारतीय न्याय व्यवस्था चौपट है तो इसका मतलब यह नहीं कि क्राइम कम नहीं किया जा सकता। क्योकि क्राइम तो राजनीतिक स्तर के अलावा धार्मिक, सामाजिक और व्यक्तिगत लेवल पर भी कंट्रोल होते हैं। बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था चौपट होने से राजनीतिक स्तर पर कम क्राइम कंट्रोल होंगे। जैसे कि कोई बाप अपनी ही बेटी का रेप करता है। जब कि सामान्यत: कोई बाप ऐसा करना सपने में भी नहीं सोच सकता। इसका कारण सामान्यत: एक बाप को कानून का ही डर नहीं, बल्कि धार्मिक, सामाजिक और व्यक्तिगत लेवल का डर है। इसलिए न्याय व्यवस्था चौपट हो या न हो; सामान्यत: एक बाप धार्मिक, सामाजिक और व्यक्तिगत लेवल के डर के कारण ऐसा कर ही नहीं सकता। केवल डर ही कारण नहीं है, बल्कि और भी कारण है। डर तो इन दसो (बेस ४ पर) लेवल में एक प्रोपर्टी है। 

जब राजनीतिक सिस्टम अच्छे ढंग से काम करता है। तब भी एक नारी का रेप होगा।

कल्पना करो कि कोई किसी लड़की का रेप करता है। अगर वह लड़की मार्शल आर्ट में माहिर है; तो शायद वह लड़की रेप से अपने आप को बचा सकती है। लेकिन वह उतना असरदायी नहीं है; जितना कि राजनितिक प्रशासन है। राजनीतिक प्रशासन तो उससे १००,००० (बेस ४ पर) गुना असरदायी है। अगर समाज अच्छा नहीं है; तो फिर भी रेप होगा। अगर समाज अच्छा है; तो यह राजनीतिक प्रशासन से १००,००० (बेस ४ पर) गुना असरदायी होगा; और रेप विल्कुल ही नहीं होगा। 

चार लेयर को भारतीय फिल्म उद्योग से समझा जा सकता है। पहले फिल्मे धार्मिक बनी। जैसे कि राजा हरीशचन्द्र वगैरा। फिर राजेश खन्ना वगैरा की सामाजिक फिल्मे बनी; जैसे कि आराधना, बावर्ची वगैरा। फिर फिल्मे अमिताभ बच्चन वगैरा की सामाजिक और राजनीतिक के मिश्र बनी। जैसे कि दीवार, शक्ति वगैरा। फिर फिल्मे मिथुन चक्रवर्ती वगैरा की केवल राजनितिक बनी। फिर फिल्मे आमिर खान वगैरा की पर्सनल लेवल की बनी। जैसे कि धूम वगैरा। 

कुछ लोग धार्मिक स्तर पर खलनायक होते हैं; लेकिन वे लोग सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत स्तर पर नायक हो भी सकते हैं। धार्मिक स्तर के खलनायक का नास्तिक या आस्तिक होने से कुछ नहीं लेना देना हैं। टॉप लेवल के धार्मिक स्तर के खलनायक सामान्यतः आस्तिक होते हैं; और वे परमात्मा में बहुत ही विश्वास रखते हैं। जब समाज में पाप बढ़ता है; धार्मिक स्तर के खलनायक काफी स्ट्रांग हो जाते हैं; और उनका सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत स्तर पर समाज को प्रभावित करने की शक्ति बढ़ जाती है; और समाज को लगता है कि वे सही हैं। 

कुछ लोग सामाजिक स्तर पर खलनायक होते हैं; लेकिन वे लोग धार्मिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत स्तर पर नायक हो भी सकते हैं। जो लोग सामाजिक स्तर पर खलनायक होते हैं; उनका समाज में बहुत प्रभाव हो सकता है; और नहीं भी हो सकता है। जब उनका समाज में काफी प्रभाव होता है; तो वे समाज को गलत दिशा में लेकर जाते हैं। अगर उनका समाज में कोई प्रभाव नहीं होता है; तो वे समाज को गलत दिशा में नहीं लेकर जा सकते हैं; लेकिन वे सामाजिक अपराध करने में चूकते नहीं हैं। 

कुछ लोग राजनीतिक स्तर पर खलनायक होते हैं; लेकिन वे लोग धार्मिक, सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर पर नायक हो भी सकते हैं। जो लोग राजनीतिक स्तर पर खलनायक होते हैं; उनका राजनीतिक में बहुत प्रभाव हो सकता है; और नहीं भी हो सकता है। जब उनका राजनीति में काफी प्रभाव होता है; तो वे राज्य (देश) को गलत दिशा में लेकर जाते हैं। अगर उनका राजनीति में कोई प्रभाव नहीं होता है; तो वे राज्य (देश) को गलत दिशा में नहीं लेकर जा सकते हैं; लेकिन वे राजनीतिक अपराध करने में चूकते नहीं हैं। 

कुछ लोग व्यक्तिगत स्तर पर खलनायक होते हैं; लेकिन वे लोग धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर नायक हो भी सकते हैं। जो लोग व्यक्तिगत स्तर के खलनायक होते है; उनका दूसरे को अपने बातो से प्रभावित करने की क्षमता हो भी सकती है; और नहीं भी हो सकती है। जब उनका दूसरे को अपने बातो से प्रभावित करने की क्षमता होती है; तो सामने वाले को जानबुझ कर गलत सलाह देते हैं। अगर उनका दूसरे को अपने बातो से प्रभावित करने की क्षमता नहीं होती है; वे व्यक्तिगत स्तर पर अपराध करने में नहीं चूकते हैं। 

कुछ लोग प्रत्येक स्तर पर खलनायक होते हैं। सामान्यतः उनलोगो का समाज, राजनीति और व्यक्तिगत स्तर पर प्रभावित करने की क्षमता नहीं होती है।

जो धार्मिक स्तर के नायक होते हैं; वे लोग परमात्मा में बहुत ही विश्वास रखते हैं। जो सामाजिक स्तर के नायक होते हैं; वे लोग समाज में बहुत ही विश्वास रखते हैं। जो राजनीतिक स्तर के नायक होते हैं; वे लोग राजनीतिक प्रशासन में बहुत ही विश्वास रखते हैं। और उन्हें लगता है कि एक अच्छे राजनीतिक प्रशासन से सारे समस्या के समाधान निकल सकते हैं। 

(जारी)

मैं क्राइम दूर करने के लिए सेमिनार में बोलने के लिए अकेले अपने रूम में बोल कर तैयारी करता था। मैं अपने रूम में तो क्राइम दूर करने के लिए बहुत कुछ बोला था। ऊपर के टॉपिक तो क्राइम कण्ट्रोल करने की 'क ख ग' यानि बहुत ही आधारभुत चीज है। मैं जो कुछ भी अपने रूम में बका; लोग चुपचाप मेरे बातो को सुने; और मेरे मौत के लिए मेरे अगेंस्ट साजिस भी रचा। जब मुझे मेरे मौत के लिए मेरे अगेंस्ट साजिस मालूम चला; और अपने जीवन को बचाने की पूरी कोशिश करने के वावजूद मैं नाकाम रहा; तब से मुझे विल्कुल ही मन नहीं करता है कि इस दुनियाँ को कुछ दूँ। चूँकि लोग चुपके से मेरे बातो को सुन ही चुके हैं। इसलिए मैंने यह आधारभुत चीजो को बताया। जिससे कि मेरे मौत के बाद अगर कोई मेरे बातो को बोलेगा तो वह मेरे ऊपर लिखे आधारभुत चीजो का जिक्र जरुर करेगा। 

अंग्रेजी संस्करण: 
Civilization and Crime

अंत में, मैं सबसे महत्वपूर्ण बात यह कहूँगा कि पशु पक्षियों को मत खाओ; और उन्हें मत तंग करो। अगर गाय भैस वगैरा को पालो तो उन्हें मान दो; और उनके गले में मत रस्सी बाधो। नहीं तो अपने पतन की रफ़्तार तेज कर लिए। यह मेरे समूह विवाद सिद्धांत के आधार पर है; जो कि मैंने अपने रूम मे जिक्र किया था। 

Monday, November 30, 2015

Event of Lanka and Kurukshetra Wars


The history is quite big. I have quite less time. I can't complete the history. I can say only a few parts.

If someone is interested in reading this blog, I will write this blog fast, else I will prioritize less writing this blog.

This history belongs to Indian plate which consists of Pakistan, India, Nepal, Bhutan and Sri Lanka. It comes only the part of the Pakistan which is this side of the hills. In other word, India plate is separated by hills from the neighbor plate.

There were 2 big wars on this Indian plate; one is Lanka war and another is Kurukshetra war. My topic belongs to these 2 wars. This topic belongs to re-birth. This topic belongs to lord Rama's re-birth; as lord Krishna is lord Rama's re-birth. Lord Rama was born during Lanka war. And his re-birth was as a lord Krishna during Kurukshetra war. This topic belongs to re-birth of others too; who were born in both Lanka and Kurukshetra wars. Lord Rama's name was not the name Rama. After lord Rama's death, Mayasura wanted to remove lord Rama's history. So Mayasura kept the name of people belong to lord Rama based on their character what Mayasura had opinion no matter their characters were quite different than his opinion. 

If protest for Jyoti Singh Pandey Gang rape was the third light war, I would also born during Lanka and Kurukshetra wars. And if people never stop eating meat and never stop teasing animals; there will be hard war as a third world war. If I were born during Lanka war, I would be Maharshi Valmiki. He is nothing but Maharshi Vishvamitra. He is nothing but Maharshi Gautama. He is nothing but Maharshi Bhardwaja. He is nothing but Maharshi Parshuram. He is nothing but Maharshi Kaushik. In other word, Mayasura kept more than one name for the same person. Maharshi Valmiki was re-born as Maharishi Veda Vyasa during Kurukshetra war. According to this, I might be re-born of Maharishi Veda Vyasa too. Nowadays, besides me, further people might be re-born of who were born in Lanka as well as Kurukshetra wars. But I will not like to take their name; because they will delete my this blog post after my death.

There were 2 civilizations during Lanka war on this earth. Later, these 2 civilizations got mixed up before Kurukshetra war. During Lanka war, north India was called Aryavarta and south India was called Dravida. People belonging to Aryavarta were called Aryan and people belonging to Dravida were called Dravidian. It doesn't mean that there were Aryan & Dravidian 2 civilizations. Rather there were 2 civilizations in Aryavarta. One were eastern civilization and another was western civilization. Eastern civilization was extended from Aryavarta to Dravida; which was extended in more geographic area. Western part of eastern civilization was extended till Mathura, Uttar Pradesh and Maharashtra. Eastern part of eastern civilization was extended till Assam. And in Dravida, it was extended till Sri Lanka. Western civilization is called Indus Valley Civilization; which was extended to Pakistan, Kashmir, Himachal Pradesh, Punjab, Western Haryana and North Rajasthan. People of both civilizations were unknown to one another. There were no civilizations in Afghanistan and Iran. There was Mongoloid civilization in north east China; which was unknown to these 2 civilizations of Indian plate.

It was used number system base 4 in eastern civilization. According to this, Das (10), Shat (100), Sahasra (1,000) and Laksh (100,000) will correspond to 4, 16, 64 and 1024 (at base 10). This universe is also based on number system 4; for example, animal DNA is based on number system 4. The way, computer system is binary (with single state type); similar way, the universe is quaternary with triple state type. If we consider computer system as black and white CRT which needs 2 wires, we may consider the universe as color CRT which needs 4 wires. Since computer system has single state type; so state type is not used till now. But the number system which is used in the universe has three state type like red, green and blue.

I will use here number system on base 4 only. So Das (10) means 4 (at base 10). It was used number system at base 4 in the book of Lanka and Kurukshetra wars. Later, on changing number system to base 10, numbers become erroneous in the books of Lanka and Kurukshetra wars. For example; Lord Rama exiled for das and das years (i.e., 8 years, at base 10) rather than das, das, dash and dvi years (i.e., 14 = 10 + 4, at base 10). On this basis, kaurava would be shat brothers (i.e., 16, at base 10) rather than sahasr, shat, shat and das (i.e., 100, at base 10) brothers. Ravana had one head rather than 10 (at base 10). Dasanayan means who sees and inspects in das directions (at base 4) i.e., in all directions. Later this Dasanayan word changed to Dasanan word; and later to Dashanan word. People misunderstood this as having 10 (at base 4) heads. Later on changing number system to base 10, people misunderstood this as having 10 (at base 10) heads.

In eastern civilization, according to Dharmashastra, there were das varnas; brahmin, kshatriya, vaishya, and shudra. These varnas show basic professions. According to this, every person came under any of das varnas. Varna of a person was based on current profession rather than birth. In this way, if a person is in a army, he will automatically be kshatriya no matter what varna his father had. If son of that soldier opens a business and employs some shudras, son of that soldier will be called vaishya. If son of that soldier works in the product (or service) shop of others, son of that soldier will be called shudra. If we divide human body in das parts; head, torso, hand and legs; brahmin represents head, kshatriya represents hand, vaishya represents torso, shudra represents leg. No one had any harm by this varna system. Later varna system became hereditary. Why will one like to become shudra? Why not will one like to become brahmin? On becoming varna system hereditary, varna system is not only useless, but harmful too.

Civilians of eastern civilization followed Vedic religion. There were das vedas; Rigveda, Yajurveda, Samaveda and Atharvaveda.

Everything happened during Lanka and Kurukshetra wars in nature way; nothing happened in supernatural way. Equations of sin & virtue, and equations of curse & boon were maintained in natural way by re-birth.

Event of Lanka War:

Lord Rama was born in eastern civilization. Lord Rama's state is South Bihar rather than Eastern Uttar Pradesh.

(Continue)

Till now no one is better king than lord Rama on this earth. But due to greediness, lord Rama's civilian became lord Rama's against and it led to lord Rama's suicide. Lord Rama belonged to South Bihar, not eastern Uttar Pradesh. Now biharis never get a good administrator like lord Rama.

(Continue)

Before war between Lord Rama and Ravana, Ravana went to make Sita agree. He said, "Was it good whatever you have suffered here? If you had accepted my proposal for marriage, you would be in my gold palace; and you would not suffer here in Ashok vatika. On not acceptance by you, a war between me and Rama is going to be happened. Is it going to be good? Rama will be killed in the war. Will it be good?". Sita used gesture whenever Sita used to speak. With gesture, Sita replied, "It was good whatever I suffered here; because I deserve. My husband namah Rama tried to make me understand that the dear was happy with his family; and the dear would not be happy with me no matter how much I would care the dear. But I didn't agree. In return, here it has happened in opposite way. Here I try to make you understand that I'm happy with my husband namah Rama. Still you are not agree with me. It is going to be good that a war between you and my husband namah Rama is going to be happened; because my husband is following the duty of a husband. It will be good; because the god will be with my husband namah Rama in the war; because my husband namah Rama has committed a virtue by following the duty of a husband; whereas you have committed a sin by kidnapping a women. So my husband namah Rama will be the winner.". Ravana said, "How will Rama be the winner? Because I'm stronger to him. I will be the winner. So you will not get the fruit you have expected. Don't you worry about Rama's death?". Sita replied, "My only fruit is that my husband namah Rama is going to fight for me by following the duty of a husband. Which fruit are you talking about? There is always victory and loss in a war. You should worry about victory; because that fruit is applicable to you, not to me. So I don't worry about the fruit which is not applicable to me.".

(Continue)

Kumbhini, sister of Ravana was married in Mathura. When Sita went to cottage of Maharshi Valmiki after leaving lord Rama. Kumbhini used to go to visit her citizens; and make Sita a laughing stock. She used to ask her citizens by performing acting like Baiju Bawra, "Who is she?". Her citizens used to reply, "This is Sita.". She again used to ask, "Sita has left his husband Rama; and she is suffering in the cottage of Maharshi Valmiki. Is it happening well?". Her citizens used to reply, "No, it is not happening well.". She again used to ask, "Have you heard Sita's preach? Sita speaks that whatever happened was good; whatever happening is good; whatever will be happened will be good; and she is doing her duty; she doesn't worry about the fruit of her working.". On listening this, her citizens used to laugh a lot. There happened to be mockery in Mathura. People used to steal butter; and on caught, they used to say, "I have done my duty; I don't worry about the consequence.". On their funny reply, others say, "Are you mad? Why don't you worry about the punishment?". In his defense, they used to say, "I falsely stole the butter to make Sita's preach a laughing stock.".

(Continue)

Lord Rama's enemies used code word to rumor against lord Rama. For example: lord Rama's enemies used Shiva bhakta (i.e., Shivalik bhakta) word for lord Rama. They called him Shiva bhakta, because Ram worshiped Shivalik hill. When lord Rama took re-birth as lord Krishna, he started worshiping of hills. There is Govardhan hill in Mathura which is worshiped now.

Lord Rama's enemies called Sita as Sati after Sita's death. Because Sita fell down by her head on breaking earth surface by earth quake. On changing vowel positions Sita word becomes Sati i.e., Sita's opposite word is Sati work on the level of alphabet. Later during Kurukshetra war, Shiva bhakta word became Shiva word only. People used to worship God Shiva and Goddess Sati. Whereas in real sense, God Shiva is nothing but lord Rama and Goddess Sati is nothing but Sita.

On Sita's falling down in the break of earth surface on earth quake, lord Rama and his civilians who liked him started removing soil to bring back Sita's corpse from the earth break. They were calling to each other, "Li ha, ho, li ha" i.e., "Take it, take" i.e., "Throw the soil outside" ("Li ha, ho, li ha" is a Bhojpuri language phrase). But some lord Rama's civilians who were against lord Rama due to greediness, were intentionally dropping soil at the place of removing soil. In other word, they were disturbing the process of soil removal. Lord Rama took rebirth as lord Krishna in Mathura. And this time, it became in opposite way i.e., "Li ha, ho, li ha" became "Li ha, holi ha". Nowadays when people in Bihar play Holi, they tear clothes of each other and they have drugs too.

In Kashi, lord Rama's enemies rumored against lord Rama. Gossip of yogi used to start with lord Rama and end with lord Rama like "Jogi! Ra sh r r" i.e., "Jogi! Ram sh... Ram Ram". Later, after lord Rama's rebirth as lord Krishna, on the occasion of Holi, became "Jogira sharara".

Lord Rama brought Sita's corpse from the broken earth surface. And he carried Sita's corpse to Assam, Bengal and Orisha. Their Ram kept on explaining about sin and virtue with exciting gestures. But lord Rama's enemies were unable to understand sin and virtue. They were making lord Rama a laughing stock. They were saying that Shiva bhakta had become mad and carrying the corpse of Sati by keeping her on his shoulder throughout the world and doing Tandava nritya. Firstly lord Rama didn't carried Sita's corpse by keeping her on his shoulder. Rather lord Rama made mummy of Sita's corpse and made a pyramid on a Chariot. And he kept Sita's mummy in that pyramid. Today there is Ratha-Yatra festival in Orisha. Secondly, lord Rama was not mad, they were mad; who were unable to under sin and virtue. Thirdly when people were unable to understand sin and virtue, lord Rama used excite while explaining sin and virtue. Lord Rama was talking to discard his body daily.

(Continuing)

Event of Kurukshetra Wars:

People, who were born during Lanka war, had some dues of curse & virtue and sin & virtue, were re-born in Kurukshetra war.

Lord Rama was re-born as lord Krishna.
Sita was re-born as Rukmini.
Khara was re-born as Rukmi.
Kaikeyi was re-born as Kamsa.

Ravana was re-born as Jarasandha.
Mandodari was re-born as Draupadi.
Mayasura was re-born as Drupada.

Dasharatha was re-born as Vasudeva.
Kausalya was re-born as Devaki.

Jambavan was re-born as Dhritarashtra.
Trijata was re-born as Gandhari.

Husband of Manthara was re-born as Shantanu.
Manthara was re-born as Yashoda.

Vali was re-born as Karna.
Tara was re-born as Dronacharya.

Washer man was re-born as husband of Radha.
Washer woman was re-born as Radha.

Sugriva was re-born as Yudhishthira.
Hanuman was re-born as Bhima.
Angada was re-born as Arjuna.
Nala was re-born as Nakula.
Nila was re-born as Sahadeva.

Bharata was re-born as Ugrasena.
Lakshmana was re-born as Balarama.

Surpanakha was re-born as Amba.
Kaikesi was re-born as Ambika.
Kumbhini was re-born as Ambalika.

Jaya (Son of lord Rama, Lava) was re-born as (Son of Shantanu, Bhishma) Jaya.
Vijaya (Son of lord Rama, Kusha) was re-born as Vichitravirya.

Sumanta was re-born as Vidura.
Rahu was re-born as Duryodhana.

was re-born as .
was re-born as .

(Continue)

Finally, I will like to say the most important thing that never eat meat and never tease animals, birds etc. If you domesticate cows, buffaloes etc, love them and never fasten a cord in their neck; else you have increased the rate of your destruction. This is based on my group dispute theory what I discussed in my room; and you guys secretly recorded this.

लंका युद्ध और कुरुक्षेत्र युद्ध की घटना

कथा बहुत की बड़ा है। मेरे पास समय कम है। मैं कथा को पूर्ण नहीं कर पाउँगा। कथा के कुछ ही भाग कहूँगा। 

अगर कोई व्यक्ति इस ब्लॉग को पढ़ने में इंटरेस्टेड है। तो मैं जल्दी जल्दी कथा को और लिखूँगा। अन्यथा मैं इस ब्लॉग को लिखने की काम को कम महत्वपूर्व कामो में रखूँगा। 

यह कहानी इंडियन प्लेट की है। इंडियन प्लेट में पाकिस्तान, इंडिया, नेपाल, भूटान और श्रीलंका आते है। पाकिस्तान का वही भाग आता है जो कि पहाड़ो के इधर हो। यानि कि इंडियन प्लेट एशिया प्लेट से पहाड़ो द्वारा अलग होता है।

इस इंडियन प्लेट पर दो बड़े युद्ध हुए थे। एक लंका युद्ध और दूसरा कुरुक्षेत्र युद्ध। मेरा कथा इन्ही दो युद्धो की है। यह कथा पुनर्जन्म की है। यह कथा नमः राम के पुनर्जन्म की है; जो कि नमः कृष्ण के रूप में हुआ था। नमः राम लंका युद्ध के समय पैदा हुए थे। और उनका फिर से पुनर्जन्म नमः कृष्ण के रूप में कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान हुआ था। यह कथा नमः राम के अलावा और लोगो के पुनर्जन्म की है। जो की लंका और कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान पैदा हुए थे। नमः राम का नाम नमः राम नहीं था। नमः राम के मरने के बाद मायासुर नमः राम का नमो निशान मिटाना चाहता था। इसलिए नमः राम से जुड़े घटना में जुड़े लोगो का नाम उनके चरित्र के आधार पर रख दिया। और चरित्र वैसा नहीं जैसे कि वे थे; बल्कि जैसा मायासुर समझता था। 

अगर ज्योति सिंह पाण्डेय के लिए प्रोटेस्ट अगर तीसरा हल्का युद्ध था। तो मैंने भी लंका और कुरुक्षेत्र युद्ध के समय पैदा हुआ होऊँगा। और अगर लोग मांस खाना बंद नहीं किये और जीवो को सताना बंद नहीं किये; तो संसार में तीसरा गहरा युद्ध यानि विश्व युद्ध होगा। अगर मैं लंका युद्ध में पैदा होऊँगा तो मैं महर्षि बाल्मीकि होऊँगा। वही महर्षि विश्वामित्र हैं। वही महर्षि गौतम हैं। वही महर्षि भरद्वाज है। वही महर्षि परशुराम है। वही महर्षि कौशिक हैं। यानि एक ही ब्यक्ति का एक से अधिक नाम मायासुर ने रख दिया था। महर्षि बाल्मीकि का पुनर्जन्म कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान महर्षि वेद ब्यास में हुआ था। इस आधार पर मैं महर्षि वेद ब्यास का भी पुनर्जन्म होऊँगा। इस वक्त मेरे अलावा कुछ और लोगों का पुनर्जन्म हुआ होगा। जो कि लंका और कुरुक्षेत्र दोनों युद्ध के दौरान पैदा हुए थे। लेकिन मैं उनका नाम नहीं लेना चाहूँगा। क्यों कि वे लोग मेरे मरने के बाद मेरे इस ब्लॉग पोस्ट को डिलीट कर देंगे। 

नमः राम के समय इस धरती पर दो सभ्यताए थी। जो कि बाद में नमः कृष्ण के रूप में पैदा होने से पहले ही मिल कर एक सभ्यता बन गयी थी। नमः राम के समय उत्तरी भारत को आर्यावर्त कहा जाता था। और दक्षिणी भारत को द्रविड़ बोल जाता था। आर्यावर्त वाले को आर्य बोला जाता था और द्रविड़ वाले को द्रविण। इसका मतलब यह नहीं कि ये आर्य और द्रविड़ दो सभ्यताए है। बल्कि आर्यावर्त में दो सभ्यताए थी। एक पूर्वी सभ्यता और दूसरी पश्चिमी सभ्यता। पूर्वी सभ्यता आर्यावर्त से द्रविण तक फैली हुई थी। जो की ज्यादे जगह में फैली थी। पूर्वी सभ्यता पच्छिम में उत्तर प्रदेश के मथुरा तक फैली थी और गुजरात के तट तक फैली थी। और पूर्व में आसाम तक फैली हुई थी। और द्रविण में श्रीलंका तक फैली हुई थी। पश्चिमी सभ्यता को सिन्धु घाटी सभ्यता भी बोलते हैं। पश्चिमी सभ्यता पाकिस्तान, कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, पच्छिमी हरियाणा और उत्तरी राज्यस्थान तक फैली थी। दोनों सभ्यताओ के लोग एक दुसरे से अनभिज्ञ थे। ईरान और अफगानिस्तान में कोई सभ्यता नहीं थी। चीन के उत्तर पूर्व में मंगोल सभ्यता थी। जो कि इंडियन प्लेट के इस दो सभ्यताओ से अनभिज्ञ थी। 

पूर्वी सभ्यता में नंबर सिस्टम बेस ४ के थे। इस आधार पर दस (१०), शत (१००) सहस्र (१०००) और लक्ष (१०,००००) आधुनिक नंबर सिस्टम बेस १० में केवल ४, १६, ६४ और १०२४ ही हुए। यह संसार भी नंबर सिस्टम बेस ४ पर आधारित है। जैसे कि एनिमल डीएनए भी नंबर सिस्टम ४ पर आधारित है। जिस प्रकार कंप्यूटर सिस्टम १ टाइप के स्टेट का होता है और २ स्टेट होते हैं। उसी प्रकार यह संसार ३ टाइप स्टेट का होता है और ४ स्टेट होते हैं। यो समझा जाये कि अगर कंप्यूटर सिस्टम ब्लैक एंड वाइट टीवी जैसा है जिसके CRT में २ तार जाते है। तो यह संसार कलर टीवी जैसा है जिसके CRT में ४ तार जाते हैं। चूँकि कंप्यूटर सिस्टम १ टाइप स्टेट का ही होता है; इसलिए कंप्यूटर सिस्टम में स्टेट टाइप का प्रयोग नहीं किया जाता। लेकिन संसार के नंबर सिस्टम में ३ टाइप स्टेट होते हैं जैसे कि लाल, हरा और ब्लू रंग।

मैं यहाँ नंबर सिस्टम ४ ही का प्रयोग करूँगा। इसलिए यहाँ दस का मतलब ४ (बेस १० पर) होगा। लंका और कुरुक्षेत्र युद्ध की कथा में नंबर सिस्टम ४ का प्रयोग किया गया था। बाद में नंबर सिस्टम १० होने पर कथा में सारे नंबर गलत हो गए। जैसे की नमः राम दसो और दसो (यानि ८, बेस १० पर) सालो के लिए बन गए थे; न कि दसो, दसो, दसो और द्वि (यानि १४ = १० + ४, बेस १० पर) सालो के लिए। इस आधार पर कौरव कुमार शत (यानि १६, बेस १० पर) भाई हुए; न कि सहस्र, शत, शत और दस (यानि १००, बेस १० पर) भाई। रावण का एक ही सिर था; न की दस। दसनयन का मतलब जिसकी नयन दसो (बेस ४ पर) दिशाओ में देखती हो। यानि की हर तरफ देखता और परखता हो। बाद में यह दसनयन दसनन में बदला। और फिर दसनन दशानन में बदला। लोग इसका मतलब दसो (बेस ४ पर) सिरों वाला निकलने लगे। बाद में नंबर सिस्टम बेस १० के होने के बाद लोग इसका मतलब १० सिरों वाला निकालने लगे।

पूर्वी सभ्यता में धर्मशास्त्र के अनुसार दस वर्ण थे; ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। ये वर्ण मूल ब्यवसाय को दर्शाते हैं। इस आधार पर प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी वर्ण में आता था। यह वर्ण जन्म से नहीं; बल्कि कर्म पर आधारित था। यानि अगर कोई मनुष्य सेना में हुआ तो क्षत्रिय हुआ। यह मायने नहीं रखता कि उसके पिता किस वर्ण के थे। अगर उस सैनिक का पुत्र कोई ब्यवसाय खोल कर शुद्रो को अपने ब्यवसाय रोजगार देता है; तो उस सैनिक का पुत्र अब बैश्य कहा जायेगा। अगर उस सैनिक का पुत्र किसी दुसरे के ब्यवसाय में काम करता है; तो उस सैनिक का पुत्र अब शुद्र कहा जायेगा। अगर शरीर को दस भागो में बटा जाये; सर, हाथ, पैर और बचा पेट वाला भाग। तो ब्राह्मण सर को दर्शाता है। क्षत्रिय हाथ को दर्शाता है। पैर शुद्र को दर्शाता है। और बचा सीना और पेट वाला भाग वैश्य को दर्शाता है।

इस वर्ण ब्यवस्था से किसी को नुकसान नहीं था। बाद में जब जन्म के आधार पर हुआ तो कोई क्यों शुद्र बनना चाहेगा? सब कोई ब्राह्मण क्यों नहीं बने? वर्ण ब्यवस्था के जन्म के आधार पर होने से वर्ण ब्यवस्था बेकार (यूज़लेस) ही नहीं, बल्कि हानिकारक है। 

पूर्वी सभ्यता वाले वैदिक धर्म का पालन करते थे। दस वेद होते हैं; ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। 

ये जो लंका और कुरुक्षेत्र का घटना है। उसमे कुछ भी सुपरनेचुरल चीज नहीं है। सबकुछ नेचुरल वे में हुआ है। 

लंका युद्ध की घटना:

नमः राम आर्यावर्त के पूर्वी सभ्यता में पैदा हुए थे। नमः राम का राज्य दक्षिणी बिहार है; न कि पूर्वी उत्तर प्रदेश। 

नमः राम से अच्छा राजा इस धरती पर अभी तक कोई नहीं हुआ है। लेकिन पैसे के लालच में नमः राम के प्रजा ही चुपके से नमः राम के विरोधी हो गयी थी और नमः राम को आत्महत्या करना पड़ा। अब बिहारियों को नमः राम जैसा कोई राजा नहीं मिलता है।

(जारी)

नमः राम और रावण के बीच युद्ध होने से पहले रावण सीता को दुबारा मनाने गया। वह सीता से बोला कि बोलो कि जो तुम्हारे साथ अभी तक जो हुआ; वह अच्छा हुआ? अगर तुम मेरी बात मान गयी होती तो तुम मेरे सोने की महल में होती। यहाँ अशोक बाटिका में तुम दुःख नहीं झेलती। तुम्हारे न मानने से आज मेरे और राम के बीच युद्ध होने जा रहा है। क्या यह अच्छा होने जा रहा है? युद्ध में राम मारा जायेगा। क्या यह अच्छा होगा? सीता जब भी बोलती थी; तो सीता हावभाव के साथ बोलती थी। सीता हावभाव के साथ रावण को समझाने लगी कि मैंने यहाँ जो दुःख झेला है; वह अच्छा हुआ; क्यों कि मैं इसके लायक थी। मेरे पति नमः राम मुझे बहुत समझाया था कि वह हिरण अपने परिवार के साथ खुश है। तुम्हारे साथ खुश नहीं रहेगा। तुम लाख उसका ख्याल रखने की कोशिश क्यों न करो; लेकिन मैं नहीं मानी। यहाँ बदले में मेरे साथ उल्टा हुआ। यहाँ मैं बहुत समझाने की कोशिश की कि मैं अपने पति नमः राम के साथ खुश हूँ। फिर भी आप लोग नहीं मान रहे हैं। आपके और मेरे पति नमः राम के साथ युद्ध जो होने जा रहा है; वह अच्छा हो रहा है। क्यों की वे अपने पति होने के कर्तव्यो को निभा रहे हैं। युद्ध में परमात्मा मेरे पति के साथ देंगे। क्यों कि उन्होंने अपने कर्तव्यों को निभा कर पुण्य किया है। जब कि आपने नारी हरण कर के पाप किया है। इसलिए मेरे पति नमः राम विजयी होंगे। इस प्रकार जो होगा; वह अच्छा होगा। रावण बोला, "कैसे राम विजयी होगा? क्यों कि मैं ज्यादे शक्तिशाली हूँ। मैं विजयी होऊंगा। इसलिए तुम जिस फल की आशा की हो। वह नहीं मिलने वाला। क्या तुम्हे राम के हारने की चिंता नहीं है?"। सीता ने जबाब दिया कि मेरा फल तो बस यह है कि मेरे पति अपने पति होने के कर्तव्यों का पालन करते हुए मेरे लिए आपसे युद्ध करने जा रहे हैं। आप कौन सी फल की बात कर रहे हैं? युद्ध में हार जीत तो होता रहता है। इस फल की आपको चिंता करना चाहिए। चूँकि यह फल मेरे लिए नहीं है। इसलिए मुझे इस फल की चिंता नहीं। 

(जारी)

जब सीता नमः राम को छोड़ कर महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में गयी। तब रावण की बहन कुम्भिनी, जो की मथुरा मे रहती थी। वह सीता की मजाक उड़ाती थी। वह अपने प्रजा के पास जाती थी; और वह बैजू बावरा की तरह अभिनय करके सीता की मजाक उड़ाते हुए प्रजा से पूछती थी, "बताओ यह कौन है?"। तो उसकी प्रजा जबाब देती, "यह सीता है।"। कुम्भिनी फिर से अपने प्रजा से पूछती, "सीता इस वक्त राम को छोड़ कर महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में दुःख झेल रही है। बताओ यह अच्छा हो रहा है?"। तो उसकी प्रजा जबाब देती, "नहीं, यह अच्छा नहीं हो रहा है।"। कुम्भिनी फिर से अपने प्रजा से बोलती, "तुम लोगो ने सीता का उपदेश सुना है? सीता बोलती है। कि जो हुआ वो अच्छा हुआ। जो हो रहा है वो अच्छा हो रहा है। जो होगा वो अच्छा होगा। मैं कर्म कर रही हूँ। मुझे फल की चिंता नहीं है।"। यह सुन कर उसकी प्रजा ठहाके मार कर हस पड़ती। फिर मथुरा में खूब मजाक चलता रहता। लोग दुसरो की मख्खन चुरा लेते; और पकड़े जाने पर बोलते कि मैंने कर्म किया; मुझे फल की चिंता नहीं है। फिर दूसरा बोलता कि तुम पागल हो क्या? तुम्हे सजा की कैसे चिंता नहीं है। फिर वह अपने बचाव में बोलता कि मैं तो सीता के उपदेश का मजाक उड़ाने के लिए झूठमुठ का मख्खन चुराया था। 

(जारी)

नमः राम के विरोधी जब भी नमः राम की झूठी शिकायत करते तो कोड वर्ड यूज़ करते थे। जैसे की नमः राम के विरोधी नमः राम को शिवा भक्त (यानि शिवालिक भक्त) बोलते थे। वे नमः राम को शिवा भक्त इसलिए बोलते थे। क्योंकि नमः राम शिवालिक पर्वत को पूजते थे। नमः राम का जन्म नमः कृष्ण के रूप में मथुरा में हुआ। नमः कृष्ण फिर से पर्वतो की पूजा स्टार्ट करवा दिया। मथुरा में गोवर्धन पर्वत है। जिसकी पूजा की जाती है। नमः राम के विरोधी सीता के मौत के बाद सीता तो सती इसलिए बोलते थे। क्योकि भूकम्प के द्वारा धरती में दरार फटने पर सीता उस दरार में उलट गयी। और सीता शब्द में मंत्रा के जगह को फेर करने पर सती बन जाता है। यानि कि सीता शब्द का उल्टा सती हुआ। बाद में कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान शिव भक्त शब्द केवल शिव शब्द ही रह गया। अब लोग भगवान शिव और सती को पूजने लगे। जब कि जब कि वास्तव में भगवान शिव नमः राम ही है और देवी सती सीता ही है। 

भूकम्प आने पर सीता के धरती में समा जाने पर नमः राम और उनके पक्ष के लोग धरती से सीता तो निकालने के लिए मिट्टी हटाना स्टार्ट कर दिया। वे लोग बोल रहे थे, "ली ह, हो, ली ह"। यानि; लो जी, लो। यानि; मिट्टी लो और बाहर फेको। ("ली ह, हो, ली ह" भोजपुरी टर्म है।) लेकिन जो नमः राम के प्रजा पैसे के लालच में चुपके से नमः राम के अगेंस्ट थे मिट्टी को हटाने के बहाने मिट्टी को हटाने के जगह जानबुझ कर मिट्टी वापस डाल रहे थे। यानि वे लोग मिट्टी हटाने के प्रक्रिया को डिस्टर्ब कर रहे थे। नमः राम का पुनर्जन्म हुआ नमः कृष्ण के रूप में मथुरा में हुआ और इस बार उल्टा हुआ यानि वह "ली ह, हो, ली ह" बन गया "ली ह, होली ह"। अब बिहार में लोग होली खेलते हैं। तो एक दुसरे के कपड़े फाड़ते हैं। होली के दिन नशा भी करते हैं। 

काशी में नमः राम की खूब झूठी शिकायत करते थे। वहाँ योगी की बाते नमः राम से स्टार्ट होती थी और नमः राम पर ही ख़त्म होती थी। जैसे कि "जोगी! रा श र र" यानि कि "जोगी! राम श… राम  राम"। बाद में वह नमः राम के पुनर्जन्म नमः कृष्ण के रूप में होली के मौके पर बदल गया "जोगीरा शरर"।

नमः राम ने सीता के लाश को धरती से निकाला। और नमः राम सीता के लाश को आसाम, बंगाल और उड़ीसा लेकर गए। वहाँ नमः राम पैर पटक पटक कर पाप पुण्य को बहुत समझाते रहे। लेकिन वे सब के भेजे में कुछ नहीं धुसता था। वे सब नमः राम का मजाक बना रहे थे। वे बोल रहे रहे थे कि यह शिवा भक्त पागल हो गया है। अपने कंधे पर सती के लाश को रख कर सारी दुनिया में भटक रहा है और तांडव नृत्य कर रहा है। पहली बात यह कि नमः राम कंधे पर रख कर सीता के लाश को असाम, बंगाल या उड़ीसा नहीं ले गए थे। बल्कि नमः राम ने सीता की ममी बनवाया था और रथ पर पिरामिड बनवाया और उस पिरामिड में सीता के ममी को रखा था। आज उड़ीसा में रथ यात्रा समारोह होता है। दूसरी बात यह कि पागल नमः राम नहीं, बल्कि वे लोग थे जिन्हें नमः राम के पाप और पुण्य की बाते समझ में नहीं आ रही थी। तीसरी बात यह कि जब उन लोगो को नमः राम की बात नहीं समझ में आती थी तो नमः राम उत्तेजित होकर हाथ और पैर पटक रहे थे और अपना तन भी त्यागने की बात नित्य करते थे। 

नमः राम के मरने के बाद नमः राम के साथ भगवान शिव & भगवान विष्णु को जाना जाता है। जब की नमः राम, भगवान शिव और भगवान विष्णु एक ही ब्यक्ति है। आसाम में कामाख्या देवी की योनि की पूजा की जाती है। 

(जारी)

कुरुक्षेत्र युद्ध की घटना:

लंका युद्ध के समय पैदा हुए लोगो में जिनका किसी दुसरे के साथ कुछ पाप और पुण्य का हिसाब रह गया था; कुरुक्षेत्र युद्ध के समय उनलोगो का फिर से पुनर्जन्म हुआ।

जो राम थे; वे कृष्ण थे। 
जो दशरथ थे; वे वसुदेव थे।
जो सुमंत थे; वे विदुर थे। 
जो जामवन्त थे; वे धृतराष्ट्र थे। 
जो भरत थे; वे उग्रसेन थे। 
जो लक्ष्मण थे; वे बलराम थे। 
जो बालि थे; वे कर्ण थे। 
जो सुग्रीव थे; वे युधिष्ठिर थे।
जो हनुमान जी थे; वे भीम थे।
जो अंगद थे; वे अर्जुन थे। 
जो नल थे; वे नकुल  थे। 
जो नील थे; वे सहदेव थे। 
जो थे; वे थे। 
जो थे; वे थे। 
जो थे; वे थे। 
जो थे; वे थे। 

जो सीता थी; वे रुक्मिणी थी।
जो कौशल्या थी; वे देवकी थी।
जो त्रिजटा थी; वे गांधारी थी।
जो थी; वे थी।
जो थी; वे थी।
जो थी; वे थी।
जो थी; वे थी।

जो रावण था; वह जरासन्ध था।
जो मन्थरा का पति था; वह शांतनु था।
जो मयासुर था; वह द्रुपद था।
जो राहुल था; वह दुर्योधन था।
जो खर था; वह रुक्मी था।
जो धोबी था, वह राधा का पति था।
जो जय (राम का पुत्र, लव) था; वह (शांतनु का पुत्र, भीष्म) जय था।
जो विजय (राम का पुत्र, कुश) था; वह विचित्रवीर्य था।
जो था; वह था।
जो था; वह था।
जो था; वह था।
जो था; वह था।

जो धोबन थी; वह राधा थी।
जो मन्थरा थी; वह यशोदा थी।
जो शूर्पणखा थी; वह अम्बा थी।
जो कैकसी थी; वह अम्बिका थी।
जो कुम्भिनी थी; वह अम्बालिका थी।
जो मन्दोदरी थी; वह द्रौपदी थी।
जो थी; वह थी।
जो थी; वह थी।
जो थी; वह थी।
जो थी; वह थी।

जो कैकेयी थी; वह कंस था।
जो थी; वह था।
जो थी; वह था।
जो थी; वह था।
जो थी; वह था।

(जारी)

अंत में, मैं सबसे महत्वपूर्ण बात यह कहूँगा कि पशु पक्षियों को मत खाओ; और उन्हें मत तंग करो। अगर गाय भैस वगैरा को पालो तो उन्हें मान दो; और उनके गले में मत रस्सी बाधो। नहीं तो अपने पतन की रफ़्तार तेज कर लिए। यह मेरे समूह विवाद सिद्धांत के आधार पर है; जो कि मैंने अपने रूम मे जिक्र किया था।