Monday, November 30, 2015

लंका युद्ध और कुरुक्षेत्र युद्ध की घटना

कथा बहुत की बड़ा है। मेरे पास समय कम है। मैं कथा को पूर्ण नहीं कर पाउँगा। कथा के कुछ ही भाग कहूँगा। 

अगर कोई व्यक्ति इस ब्लॉग को पढ़ने में इंटरेस्टेड है। तो मैं जल्दी जल्दी कथा को और लिखूँगा। अन्यथा मैं इस ब्लॉग को लिखने की काम को कम महत्वपूर्व कामो में रखूँगा। 

यह कहानी इंडियन प्लेट की है। इंडियन प्लेट में पाकिस्तान, इंडिया, नेपाल, भूटान और श्रीलंका आते है। पाकिस्तान का वही भाग आता है जो कि पहाड़ो के इधर हो। यानि कि इंडियन प्लेट एशिया प्लेट से पहाड़ो द्वारा अलग होता है।

इस इंडियन प्लेट पर दो बड़े युद्ध हुए थे। एक लंका युद्ध और दूसरा कुरुक्षेत्र युद्ध। मेरा कथा इन्ही दो युद्धो की है। यह कथा पुनर्जन्म की है। यह कथा नमः राम के पुनर्जन्म की है; जो कि नमः कृष्ण के रूप में हुआ था। नमः राम लंका युद्ध के समय पैदा हुए थे। और उनका फिर से पुनर्जन्म नमः कृष्ण के रूप में कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान हुआ था। यह कथा नमः राम के अलावा और लोगो के पुनर्जन्म की है। जो की लंका और कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान पैदा हुए थे। नमः राम का नाम नमः राम नहीं था। नमः राम के मरने के बाद मायासुर नमः राम का नमो निशान मिटाना चाहता था। इसलिए नमः राम से जुड़े घटना में जुड़े लोगो का नाम उनके चरित्र के आधार पर रख दिया। और चरित्र वैसा नहीं जैसे कि वे थे; बल्कि जैसा मायासुर समझता था। 

अगर ज्योति सिंह पाण्डेय के लिए प्रोटेस्ट अगर तीसरा हल्का युद्ध था। तो मैंने भी लंका और कुरुक्षेत्र युद्ध के समय पैदा हुआ होऊँगा। और अगर लोग मांस खाना बंद नहीं किये और जीवो को सताना बंद नहीं किये; तो संसार में तीसरा गहरा युद्ध यानि विश्व युद्ध होगा। अगर मैं लंका युद्ध में पैदा होऊँगा तो मैं महर्षि बाल्मीकि होऊँगा। वही महर्षि विश्वामित्र हैं। वही महर्षि गौतम हैं। वही महर्षि भरद्वाज है। वही महर्षि परशुराम है। वही महर्षि कौशिक हैं। यानि एक ही ब्यक्ति का एक से अधिक नाम मायासुर ने रख दिया था। महर्षि बाल्मीकि का पुनर्जन्म कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान महर्षि वेद ब्यास में हुआ था। इस आधार पर मैं महर्षि वेद ब्यास का भी पुनर्जन्म होऊँगा। इस वक्त मेरे अलावा कुछ और लोगों का पुनर्जन्म हुआ होगा। जो कि लंका और कुरुक्षेत्र दोनों युद्ध के दौरान पैदा हुए थे। लेकिन मैं उनका नाम नहीं लेना चाहूँगा। क्यों कि वे लोग मेरे मरने के बाद मेरे इस ब्लॉग पोस्ट को डिलीट कर देंगे। 

नमः राम के समय इस धरती पर दो सभ्यताए थी। जो कि बाद में नमः कृष्ण के रूप में पैदा होने से पहले ही मिल कर एक सभ्यता बन गयी थी। नमः राम के समय उत्तरी भारत को आर्यावर्त कहा जाता था। और दक्षिणी भारत को द्रविड़ बोल जाता था। आर्यावर्त वाले को आर्य बोला जाता था और द्रविड़ वाले को द्रविण। इसका मतलब यह नहीं कि ये आर्य और द्रविड़ दो सभ्यताए है। बल्कि आर्यावर्त में दो सभ्यताए थी। एक पूर्वी सभ्यता और दूसरी पश्चिमी सभ्यता। पूर्वी सभ्यता आर्यावर्त से द्रविण तक फैली हुई थी। जो की ज्यादे जगह में फैली थी। पूर्वी सभ्यता पच्छिम में उत्तर प्रदेश के मथुरा तक फैली थी और गुजरात के तट तक फैली थी। और पूर्व में आसाम तक फैली हुई थी। और द्रविण में श्रीलंका तक फैली हुई थी। पश्चिमी सभ्यता को सिन्धु घाटी सभ्यता भी बोलते हैं। पश्चिमी सभ्यता पाकिस्तान, कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, पच्छिमी हरियाणा और उत्तरी राज्यस्थान तक फैली थी। दोनों सभ्यताओ के लोग एक दुसरे से अनभिज्ञ थे। ईरान और अफगानिस्तान में कोई सभ्यता नहीं थी। चीन के उत्तर पूर्व में मंगोल सभ्यता थी। जो कि इंडियन प्लेट के इस दो सभ्यताओ से अनभिज्ञ थी। 

पूर्वी सभ्यता में नंबर सिस्टम बेस ४ के थे। इस आधार पर दस (१०), शत (१००) सहस्र (१०००) और लक्ष (१०,००००) आधुनिक नंबर सिस्टम बेस १० में केवल ४, १६, ६४ और १०२४ ही हुए। यह संसार भी नंबर सिस्टम बेस ४ पर आधारित है। जैसे कि एनिमल डीएनए भी नंबर सिस्टम ४ पर आधारित है। जिस प्रकार कंप्यूटर सिस्टम १ टाइप के स्टेट का होता है और २ स्टेट होते हैं। उसी प्रकार यह संसार ३ टाइप स्टेट का होता है और ४ स्टेट होते हैं। यो समझा जाये कि अगर कंप्यूटर सिस्टम ब्लैक एंड वाइट टीवी जैसा है जिसके CRT में २ तार जाते है। तो यह संसार कलर टीवी जैसा है जिसके CRT में ४ तार जाते हैं। चूँकि कंप्यूटर सिस्टम १ टाइप स्टेट का ही होता है; इसलिए कंप्यूटर सिस्टम में स्टेट टाइप का प्रयोग नहीं किया जाता। लेकिन संसार के नंबर सिस्टम में ३ टाइप स्टेट होते हैं जैसे कि लाल, हरा और ब्लू रंग।

मैं यहाँ नंबर सिस्टम ४ ही का प्रयोग करूँगा। इसलिए यहाँ दस का मतलब ४ (बेस १० पर) होगा। लंका और कुरुक्षेत्र युद्ध की कथा में नंबर सिस्टम ४ का प्रयोग किया गया था। बाद में नंबर सिस्टम १० होने पर कथा में सारे नंबर गलत हो गए। जैसे की नमः राम दसो और दसो (यानि ८, बेस १० पर) सालो के लिए बन गए थे; न कि दसो, दसो, दसो और द्वि (यानि १४ = १० + ४, बेस १० पर) सालो के लिए। इस आधार पर कौरव कुमार शत (यानि १६, बेस १० पर) भाई हुए; न कि सहस्र, शत, शत और दस (यानि १००, बेस १० पर) भाई। रावण का एक ही सिर था; न की दस। दसनयन का मतलब जिसकी नयन दसो (बेस ४ पर) दिशाओ में देखती हो। यानि की हर तरफ देखता और परखता हो। बाद में यह दसनयन दसनन में बदला। और फिर दसनन दशानन में बदला। लोग इसका मतलब दसो (बेस ४ पर) सिरों वाला निकलने लगे। बाद में नंबर सिस्टम बेस १० के होने के बाद लोग इसका मतलब १० सिरों वाला निकालने लगे।

पूर्वी सभ्यता में धर्मशास्त्र के अनुसार दस वर्ण थे; ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। ये वर्ण मूल ब्यवसाय को दर्शाते हैं। इस आधार पर प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी वर्ण में आता था। यह वर्ण जन्म से नहीं; बल्कि कर्म पर आधारित था। यानि अगर कोई मनुष्य सेना में हुआ तो क्षत्रिय हुआ। यह मायने नहीं रखता कि उसके पिता किस वर्ण के थे। अगर उस सैनिक का पुत्र कोई ब्यवसाय खोल कर शुद्रो को अपने ब्यवसाय रोजगार देता है; तो उस सैनिक का पुत्र अब बैश्य कहा जायेगा। अगर उस सैनिक का पुत्र किसी दुसरे के ब्यवसाय में काम करता है; तो उस सैनिक का पुत्र अब शुद्र कहा जायेगा। अगर शरीर को दस भागो में बटा जाये; सर, हाथ, पैर और बचा पेट वाला भाग। तो ब्राह्मण सर को दर्शाता है। क्षत्रिय हाथ को दर्शाता है। पैर शुद्र को दर्शाता है। और बचा सीना और पेट वाला भाग वैश्य को दर्शाता है।

इस वर्ण ब्यवस्था से किसी को नुकसान नहीं था। बाद में जब जन्म के आधार पर हुआ तो कोई क्यों शुद्र बनना चाहेगा? सब कोई ब्राह्मण क्यों नहीं बने? वर्ण ब्यवस्था के जन्म के आधार पर होने से वर्ण ब्यवस्था बेकार (यूज़लेस) ही नहीं, बल्कि हानिकारक है। 

पूर्वी सभ्यता वाले वैदिक धर्म का पालन करते थे। दस वेद होते हैं; ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। 

ये जो लंका और कुरुक्षेत्र का घटना है। उसमे कुछ भी सुपरनेचुरल चीज नहीं है। सबकुछ नेचुरल वे में हुआ है। 

लंका युद्ध की घटना:

नमः राम आर्यावर्त के पूर्वी सभ्यता में पैदा हुए थे। नमः राम का राज्य दक्षिणी बिहार है; न कि पूर्वी उत्तर प्रदेश। 

नमः राम से अच्छा राजा इस धरती पर अभी तक कोई नहीं हुआ है। लेकिन पैसे के लालच में नमः राम के प्रजा ही चुपके से नमः राम के विरोधी हो गयी थी और नमः राम को आत्महत्या करना पड़ा। अब बिहारियों को नमः राम जैसा कोई राजा नहीं मिलता है।

(जारी)

नमः राम और रावण के बीच युद्ध होने से पहले रावण सीता को दुबारा मनाने गया। वह सीता से बोला कि बोलो कि जो तुम्हारे साथ अभी तक जो हुआ; वह अच्छा हुआ? अगर तुम मेरी बात मान गयी होती तो तुम मेरे सोने की महल में होती। यहाँ अशोक बाटिका में तुम दुःख नहीं झेलती। तुम्हारे न मानने से आज मेरे और राम के बीच युद्ध होने जा रहा है। क्या यह अच्छा होने जा रहा है? युद्ध में राम मारा जायेगा। क्या यह अच्छा होगा? सीता जब भी बोलती थी; तो सीता हावभाव के साथ बोलती थी। सीता हावभाव के साथ रावण को समझाने लगी कि मैंने यहाँ जो दुःख झेला है; वह अच्छा हुआ; क्यों कि मैं इसके लायक थी। मेरे पति नमः राम मुझे बहुत समझाया था कि वह हिरण अपने परिवार के साथ खुश है। तुम्हारे साथ खुश नहीं रहेगा। तुम लाख उसका ख्याल रखने की कोशिश क्यों न करो; लेकिन मैं नहीं मानी। यहाँ बदले में मेरे साथ उल्टा हुआ। यहाँ मैं बहुत समझाने की कोशिश की कि मैं अपने पति नमः राम के साथ खुश हूँ। फिर भी आप लोग नहीं मान रहे हैं। आपके और मेरे पति नमः राम के साथ युद्ध जो होने जा रहा है; वह अच्छा हो रहा है। क्यों की वे अपने पति होने के कर्तव्यो को निभा रहे हैं। युद्ध में परमात्मा मेरे पति के साथ देंगे। क्यों कि उन्होंने अपने कर्तव्यों को निभा कर पुण्य किया है। जब कि आपने नारी हरण कर के पाप किया है। इसलिए मेरे पति नमः राम विजयी होंगे। इस प्रकार जो होगा; वह अच्छा होगा। रावण बोला, "कैसे राम विजयी होगा? क्यों कि मैं ज्यादे शक्तिशाली हूँ। मैं विजयी होऊंगा। इसलिए तुम जिस फल की आशा की हो। वह नहीं मिलने वाला। क्या तुम्हे राम के हारने की चिंता नहीं है?"। सीता ने जबाब दिया कि मेरा फल तो बस यह है कि मेरे पति अपने पति होने के कर्तव्यों का पालन करते हुए मेरे लिए आपसे युद्ध करने जा रहे हैं। आप कौन सी फल की बात कर रहे हैं? युद्ध में हार जीत तो होता रहता है। इस फल की आपको चिंता करना चाहिए। चूँकि यह फल मेरे लिए नहीं है। इसलिए मुझे इस फल की चिंता नहीं। 

(जारी)

जब सीता नमः राम को छोड़ कर महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में गयी। तब रावण की बहन कुम्भिनी, जो की मथुरा मे रहती थी। वह सीता की मजाक उड़ाती थी। वह अपने प्रजा के पास जाती थी; और वह बैजू बावरा की तरह अभिनय करके सीता की मजाक उड़ाते हुए प्रजा से पूछती थी, "बताओ यह कौन है?"। तो उसकी प्रजा जबाब देती, "यह सीता है।"। कुम्भिनी फिर से अपने प्रजा से पूछती, "सीता इस वक्त राम को छोड़ कर महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में दुःख झेल रही है। बताओ यह अच्छा हो रहा है?"। तो उसकी प्रजा जबाब देती, "नहीं, यह अच्छा नहीं हो रहा है।"। कुम्भिनी फिर से अपने प्रजा से बोलती, "तुम लोगो ने सीता का उपदेश सुना है? सीता बोलती है। कि जो हुआ वो अच्छा हुआ। जो हो रहा है वो अच्छा हो रहा है। जो होगा वो अच्छा होगा। मैं कर्म कर रही हूँ। मुझे फल की चिंता नहीं है।"। यह सुन कर उसकी प्रजा ठहाके मार कर हस पड़ती। फिर मथुरा में खूब मजाक चलता रहता। लोग दुसरो की मख्खन चुरा लेते; और पकड़े जाने पर बोलते कि मैंने कर्म किया; मुझे फल की चिंता नहीं है। फिर दूसरा बोलता कि तुम पागल हो क्या? तुम्हे सजा की कैसे चिंता नहीं है। फिर वह अपने बचाव में बोलता कि मैं तो सीता के उपदेश का मजाक उड़ाने के लिए झूठमुठ का मख्खन चुराया था। 

(जारी)

नमः राम के विरोधी जब भी नमः राम की झूठी शिकायत करते तो कोड वर्ड यूज़ करते थे। जैसे की नमः राम के विरोधी नमः राम को शिवा भक्त (यानि शिवालिक भक्त) बोलते थे। वे नमः राम को शिवा भक्त इसलिए बोलते थे। क्योंकि नमः राम शिवालिक पर्वत को पूजते थे। नमः राम का जन्म नमः कृष्ण के रूप में मथुरा में हुआ। नमः कृष्ण फिर से पर्वतो की पूजा स्टार्ट करवा दिया। मथुरा में गोवर्धन पर्वत है। जिसकी पूजा की जाती है। नमः राम के विरोधी सीता के मौत के बाद सीता तो सती इसलिए बोलते थे। क्योकि भूकम्प के द्वारा धरती में दरार फटने पर सीता उस दरार में उलट गयी। और सीता शब्द में मंत्रा के जगह को फेर करने पर सती बन जाता है। यानि कि सीता शब्द का उल्टा सती हुआ। बाद में कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान शिव भक्त शब्द केवल शिव शब्द ही रह गया। अब लोग भगवान शिव और सती को पूजने लगे। जब कि जब कि वास्तव में भगवान शिव नमः राम ही है और देवी सती सीता ही है। 

भूकम्प आने पर सीता के धरती में समा जाने पर नमः राम और उनके पक्ष के लोग धरती से सीता तो निकालने के लिए मिट्टी हटाना स्टार्ट कर दिया। वे लोग बोल रहे थे, "ली ह, हो, ली ह"। यानि; लो जी, लो। यानि; मिट्टी लो और बाहर फेको। ("ली ह, हो, ली ह" भोजपुरी टर्म है।) लेकिन जो नमः राम के प्रजा पैसे के लालच में चुपके से नमः राम के अगेंस्ट थे मिट्टी को हटाने के बहाने मिट्टी को हटाने के जगह जानबुझ कर मिट्टी वापस डाल रहे थे। यानि वे लोग मिट्टी हटाने के प्रक्रिया को डिस्टर्ब कर रहे थे। नमः राम का पुनर्जन्म हुआ नमः कृष्ण के रूप में मथुरा में हुआ और इस बार उल्टा हुआ यानि वह "ली ह, हो, ली ह" बन गया "ली ह, होली ह"। अब बिहार में लोग होली खेलते हैं। तो एक दुसरे के कपड़े फाड़ते हैं। होली के दिन नशा भी करते हैं। 

काशी में नमः राम की खूब झूठी शिकायत करते थे। वहाँ योगी की बाते नमः राम से स्टार्ट होती थी और नमः राम पर ही ख़त्म होती थी। जैसे कि "जोगी! रा श र र" यानि कि "जोगी! राम श… राम  राम"। बाद में वह नमः राम के पुनर्जन्म नमः कृष्ण के रूप में होली के मौके पर बदल गया "जोगीरा शरर"।

नमः राम ने सीता के लाश को धरती से निकाला। और नमः राम सीता के लाश को आसाम, बंगाल और उड़ीसा लेकर गए। वहाँ नमः राम पैर पटक पटक कर पाप पुण्य को बहुत समझाते रहे। लेकिन वे सब के भेजे में कुछ नहीं धुसता था। वे सब नमः राम का मजाक बना रहे थे। वे बोल रहे रहे थे कि यह शिवा भक्त पागल हो गया है। अपने कंधे पर सती के लाश को रख कर सारी दुनिया में भटक रहा है और तांडव नृत्य कर रहा है। पहली बात यह कि नमः राम कंधे पर रख कर सीता के लाश को असाम, बंगाल या उड़ीसा नहीं ले गए थे। बल्कि नमः राम ने सीता की ममी बनवाया था और रथ पर पिरामिड बनवाया और उस पिरामिड में सीता के ममी को रखा था। आज उड़ीसा में रथ यात्रा समारोह होता है। दूसरी बात यह कि पागल नमः राम नहीं, बल्कि वे लोग थे जिन्हें नमः राम के पाप और पुण्य की बाते समझ में नहीं आ रही थी। तीसरी बात यह कि जब उन लोगो को नमः राम की बात नहीं समझ में आती थी तो नमः राम उत्तेजित होकर हाथ और पैर पटक रहे थे और अपना तन भी त्यागने की बात नित्य करते थे। 

नमः राम के मरने के बाद नमः राम के साथ भगवान शिव & भगवान विष्णु को जाना जाता है। जब की नमः राम, भगवान शिव और भगवान विष्णु एक ही ब्यक्ति है। आसाम में कामाख्या देवी की योनि की पूजा की जाती है। 

(जारी)

कुरुक्षेत्र युद्ध की घटना:

लंका युद्ध के समय पैदा हुए लोगो में जिनका किसी दुसरे के साथ कुछ पाप और पुण्य का हिसाब रह गया था; कुरुक्षेत्र युद्ध के समय उनलोगो का फिर से पुनर्जन्म हुआ।

जो राम थे; वे कृष्ण थे। 
जो दशरथ थे; वे वसुदेव थे।
जो सुमंत थे; वे विदुर थे। 
जो जामवन्त थे; वे धृतराष्ट्र थे। 
जो भरत थे; वे उग्रसेन थे। 
जो लक्ष्मण थे; वे बलराम थे। 
जो बालि थे; वे कर्ण थे। 
जो सुग्रीव थे; वे युधिष्ठिर थे।
जो हनुमान जी थे; वे भीम थे।
जो अंगद थे; वे अर्जुन थे। 
जो नल थे; वे नकुल  थे। 
जो नील थे; वे सहदेव थे। 
जो थे; वे थे। 
जो थे; वे थे। 
जो थे; वे थे। 
जो थे; वे थे। 

जो सीता थी; वे रुक्मिणी थी।
जो कौशल्या थी; वे देवकी थी।
जो त्रिजटा थी; वे गांधारी थी।
जो थी; वे थी।
जो थी; वे थी।
जो थी; वे थी।
जो थी; वे थी।

जो रावण था; वह जरासन्ध था।
जो मन्थरा का पति था; वह शांतनु था।
जो मयासुर था; वह द्रुपद था।
जो राहुल था; वह दुर्योधन था।
जो खर था; वह रुक्मी था।
जो धोबी था, वह राधा का पति था।
जो जय (राम का पुत्र, लव) था; वह (शांतनु का पुत्र, भीष्म) जय था।
जो विजय (राम का पुत्र, कुश) था; वह विचित्रवीर्य था।
जो था; वह था।
जो था; वह था।
जो था; वह था।
जो था; वह था।

जो धोबन थी; वह राधा थी।
जो मन्थरा थी; वह यशोदा थी।
जो शूर्पणखा थी; वह अम्बा थी।
जो कैकसी थी; वह अम्बिका थी।
जो कुम्भिनी थी; वह अम्बालिका थी।
जो मन्दोदरी थी; वह द्रौपदी थी।
जो थी; वह थी।
जो थी; वह थी।
जो थी; वह थी।
जो थी; वह थी।

जो कैकेयी थी; वह कंस था।
जो थी; वह था।
जो थी; वह था।
जो थी; वह था।
जो थी; वह था।

(जारी)

अंत में, मैं सबसे महत्वपूर्ण बात यह कहूँगा कि पशु पक्षियों को मत खाओ; और उन्हें मत तंग करो। अगर गाय भैस वगैरा को पालो तो उन्हें मान दो; और उनके गले में मत रस्सी बाधो। नहीं तो अपने पतन की रफ़्तार तेज कर लिए। यह मेरे समूह विवाद सिद्धांत के आधार पर है; जो कि मैंने अपने रूम मे जिक्र किया था। 

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